" नेति नेति "
किन्ही आँखों ने इस सफर को इक क़रार दे दिया है
यह तो नहीं कि चलने का हौसला नहीं है
एक शक़्स की ही सोहबत , क़ाफी है इस फिज़्ज़ा में
मैं नहीं हूँ सियासत में , साथ क़ाफिला नहीं है
आजमाइश-ए-ज़ोर से रिश्ता नहीं मुकम्मल
इस महफिल में इक्तिदारों का दाखिला नहीं है
सब कुछ गवाँ के दरमियाँ , आबाद ही खड़े हों
ज़माना रखे खाली हाथ , तो भी मसला नहीं है
बाहम हैं जो सफर में , हैं वो मंज़िल से कहीं बढ़कर
लोगों को कश्ती बनाने का , यहाँ सिलसिला नहीं है
न उन्हें जीत की खुशी , न मुझे हारने का ग़म
दोनों को खबर है कि ये मुक़ाबला नहीं है
Comments
Post a Comment