मुक़ाबिल के मायने

जुनून-ए-जश्न की हयात में, ज़माने के सितम भी हैं 
दोनों में खुद को थामे रखना ही, बढ़ता हुआ कदम भी है

इस मैदान-ए-जंग में, ला-फ़ानियत क़ायम भी है 
हर हार में छिपा हुआ, इक जीत का परचम भी है

मेरा हक़ नहीं है उसपे कोई, पर वह मेरा हमदम भी है
साथ रहने का है वादा, आज़ाद रखने की कसम भी है

तमाम ज़ख्म हैं इस मुल्क के, हर ज़ख्म का मरहम भी है
शमशीर महफूज़ है मयान में, उठाने को कलम भी है

भरी घटाओं के मौसम हैं तो, शफ़क़-ए-शाम का आलम भी है
उन्हीं आँखों में मिलता नूर है, रही आँखें जो कभी नम भी हैं

इस ज़िंदगी के पर्दे में, मौत धागे सी बाहम भी है
मुबारकें है जन्म की, रुखसत होने का मातम भी है 

खिलाफ़त में दिन-औ-रात हों, क़ायनात में सरगम भी है
दिन की इब्तिदा जो सोज़ है, सहर के तौहफ़े में शबनम भी है 

तूफान दरमियाँ है तो, माँ का दामन ओढ़े हम भी हैं
महरम की ज़ुल्फ़ का है साएबाँ, फिर ये आसमाँ क़ायम भी है 


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