आत्म अस्मि
यह काव्य स्वनिरीक्षण के विषय पर आधारित है ।
इस कविता की प्रेरणा हमारे महान राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविता ' परिचय ' से ली गई है , कविता की तुक उसी तर्ज पर है ।
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अहं अस्मि
हूँ मैं कौन , कैसे , क्यूँ , कहाँ से ,
किसी आधार पर हूँ या निराधार हूँ मैं |
या इस संवाद के पूर्व - मध्य - पश्चात ,
सर्वथा प्रकट स्वयं में सूक्ष्म पहरेदार हूँ मैं ||
जो व्यक्ति सामने मेरे प्रकट है ,
क्या उसकी भाँति एक आकार हूँ मैं |
या उसके होने को स्वीकार कर कर ,
संबंध में तृप्त हो , लगता उसी से पार हूँ मैं ||
क्यूँ समझूँ खुद को शासक इस धरा का ,
कहाँ से पाता यह अधिकार हूँ मैं |
हिमालय - आबो - सागर से सुसज्जित जो धरा है ,
यथा ही उस धरा का स्वयं श्रृंगार हूँ मैं ||
है कथित ब्रह्मांड असीमित तक प्रकट है ,
क्या उसमें धूलिकण के प्रकार हूँ मैं |
या जो ब्रह्मांड व शून्य शब्दों में रच दे ,
ज्ञान का सर्वोच्चतम विस्तार हूँ मैं ||
Outstanding....... Beautiful words with deep meaning
ReplyDeleteThank you so much ma'am . For your appreciation , guidance and inspiration .
DeleteMind blowing bhai ...
ReplyDeleteThanks you so much bhai Utkarsh !! Your feedback means a lot since you yourself write brilliantly .
DeleteVery thoughtful and well written.
ReplyDeleteThank you so much !!!
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