आश्चर्य

चेतना के शिखर में , जो आत्मा कहे गए 
अर्थशास्त्र में मानव , मात्र संसाधन बोला ।

आशाओं आकांक्षाओं में , देखे अलग ही आँकड़े 
प्रजा मात्र वोट बैंक , गंतव्य सिंहासन बोला ।

इतनी जयंतियाँ मनीं , नायक जन्म लेना रुक से गए 
समझहीन-साक्षर खूब बनाए , बड़ा परिवर्तन बोला ।

कागज़ी कार्यवाही से , अनेकों अदृश्य सड़कें बनीं 
' सत्यमेव जयते ' का स्टांप लगा , सत्यापन बोला ।

मानव एक मशीन , तथा धन ईंधन और इनाम 
जिज्ञासा खुदमें अर्थविहीन , यह सफल जीवन बोला ।

संसार मात्र एक माया , स्वर्ग के लिए करो सब काम 
निरर्थक है अपना अस्तित्व , इसे ही दर्शन बोला ।


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