आश्चर्य
चेतना के शिखर में , जो आत्मा कहे गए
अर्थशास्त्र में मानव , मात्र संसाधन बोला ।
आशाओं आकांक्षाओं में , देखे अलग ही आँकड़े
प्रजा मात्र वोट बैंक , गंतव्य सिंहासन बोला ।
इतनी जयंतियाँ मनीं , नायक जन्म लेना रुक से गए
समझहीन-साक्षर खूब बनाए , बड़ा परिवर्तन बोला ।
कागज़ी कार्यवाही से , अनेकों अदृश्य सड़कें बनीं
' सत्यमेव जयते ' का स्टांप लगा , सत्यापन बोला ।
मानव एक मशीन , तथा धन ईंधन और इनाम
जिज्ञासा खुदमें अर्थविहीन , यह सफल जीवन बोला ।
संसार मात्र एक माया , स्वर्ग के लिए करो सब काम
निरर्थक है अपना अस्तित्व , इसे ही दर्शन बोला ।
Great words.. 👍👍
ReplyDeleteThank you so much !
DeleteSuperb 👏
ReplyDeleteThanks a lot Hritik !!
Deleteबहुत उम्दा
ReplyDeleteThanks a lot bhai Samar !!
Deleteगहरी पंक्तियाँ
ReplyDeleteThank you very much !
DeleteNice Approach of Analysis .....
ReplyDeleteThank you very much Sir 🙇♂️
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