स्वराज
क्रान्ति हुई जब सड़कों पर
तब लहु बहाया लाखों का
हो चाहे स्टालिन या हिटलर ।
इक लम्बी रेखा के दो चरम
एक दक्षिणपंथ एक वामपंथ
और मध्य तमाशा देख रहा
लाखों लोगों का भीड़तंत्र ।
यह भीड़ हताशा से भरी
खुद को निष्पक्ष-तटस्थ बताती है
चरमों पर छोड़ जिम्मेदारी का बोझ
खुदको परतंत्र पीड़ित पाती है ।
गुलामी की इस धूल हटाने
फिर याद करो किसी ऑंधी को
सड़कों-नोटों में सर्वप्रसिद्ध
उस भूले बिसरे गांधी को ।
प्रत्येक पुरुष जब अपने हाथों
लेता अपना कल-और-आज
अपने मूल्यों और नैतिकता पर
होता तब उसको स्वयं नाज़ ।
फिर इस रेखा के परे खड़ा
दिखता है कोई व्यक्ति आज
दृष्टि के सम्मुख स्वर्ग लिए
खुदके भीतर संपूर्ण स्वराज ।
Amazingly beautiful
ReplyDeleteThank you so much 🙇♂️
DeleteKya baat hai , Ashutosh 👍👍. Bahut badhiya
ReplyDeleteThank you so much Ma'am 🙇♂️
DeleteEk no. Bhai .... Gandhi wala para bhut hi badhiya thaa ... ✍️✍️
ReplyDeleteThank you so much bhai Utkarsh ! Just an attempt to understand atleast an ounce of Mt gandhi . Nothing more . 🙇♂️
DeleteWell written 👌💯
ReplyDeleteThank you 🙂
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