इतनी भी क्या रफ़्तार
इतनी भी क्या रफ़्तार कि पीछे सफ़र गया
दरिया ही समंदर में गिरने से मुकर गया
शहर-शहर मुल्क में दुनिया ही जब दिखी
तलाश में ख़ुदकी मैं फिर अपने शहर गया
जिससे भी मिला मानो एक दास्ताँ मिली
जब भी किसी से मिलने गया बेख़बर गया
दुनिया के रिवाज़ों से इख्तिलाफ़ थे जो भी
ज़िक्र हर उस बात का ग़ज़लों में कर गया
ख़ुदको लिए बग़ैर ही आया था मैं यहाँ
दरिया ही समंदर में गिरने से मुकर गया
शहर-शहर मुल्क में दुनिया ही जब दिखी
तलाश में ख़ुदकी मैं फिर अपने शहर गया
जिससे भी मिला मानो एक दास्ताँ मिली
जब भी किसी से मिलने गया बेख़बर गया
दुनिया के रिवाज़ों से इख्तिलाफ़ थे जो भी
ज़िक्र हर उस बात का ग़ज़लों में कर गया
ख़ुदको लिए बग़ैर ही आया था मैं यहाँ
ख़ुदको यहाँ पे छोड़ के जाने किधर गया
__________________________________
Itni bhi kya raftaar ki piichhe safar gayaa
Dariya hi samandar me girne se mukar gayaa
Shehar-shehar mulk me duniyaa hi jab dikhi
Talaash me khudki main fir apne shehar gayaa
Jisse bhi mila maano ekk dastaan milii
Jab bhi kisi se milne gayaa bekhabar gayaa
Duniya ke riwaazon se ikhtilaaf the jo bhi
Zikr har uss baat ka ghazlon me kar gayaa
Khudko liye baghair hi aaya tha main yahaan
Khudko yahaan pe chhod ke jaane kidhar gayaa
Comments
Post a Comment