कुछ ख़यालों की तहरीर
ज़माने से क़ुर्बत नहीं , बहालत के लिए फुर्सत नहीं
अहल-ए-हकम हो चाहे जो , इंक़लाब का अल्फाज़ हैं हम
क्या ही यहां खो जाएगा , क्या ही हमें हो जाएगा
जीने की शर्तें खुद लिखी हैं , उन्हीं के बस मोहताज़ हैं हम
हममें कोई न अय्यार हो , बे-नियाज़ बन तैयार हो
रिश्ते की ये मिसाल है फिर , आप अज़ान हैं तो नमाज़ हैं हम
नज़रों में भी पैगाम है , लफ़्ज़ उनमें भी तमाम हैं
तब भी अगर न बात हो , तो इक नज़्म का आगाज़ हैं हम
तहरीर = Writing
क़ुर्बत = Closeness
बहालत = Status Quo
अहल-ए-हकम = King/Ruler
अय्यार = Clever
बे-नियाज़ = Without wanting
नज़्म = Poem
Great sir
ReplyDeleteThanks Hritik !!
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteThanks Shikha !!
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