घरवापसी
हजारों की निरंतर दौड़ में ,
सबसे आगे होने की होड़ में ,
खुद को यकायक थाम लूं
कहता कोई जज़्बात है ।
भरे इस शोर में मैं मौन हूं ,
कि खुद को जान लूं मैं कौन हूं ,
यथा आवाज़ आएगी जो फिर
वह मुझसे मेरी मुलाकात है ।
खुली आँखें तो ख्वाब खो गया ,
जरा सा क़तरा तट को धो गया ,
ज़हन में वह नजारा है कि जैसे
समंदर से भरी परात है ।
तारों भरे रोमांच की इस रात में ,
असीम इस मुकम्मल क़ायनात में ,
हर इक ज़र्रा है मुझसे यूं जुड़ा
मानो मेरी ही बारात है ।
Well right👍
ReplyDeleteThank you !
DeleteAmazing write -up sir!
ReplyDeleteThank you !!
DeleteHeart touching 💞
ReplyDeleteThank you Shikha 🙂
DeleteIts absolutely perfact👍👍
ReplyDeleteThank you !
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